नरसिंहपुर में DEO संदीप नेमा की लापरवाही — दोषसिद्ध शिक्षक पर अब तक नहीं कर पाए कोई कार्रवाई

नरसिंहपुर जिले में शिक्षा विभाग की कार्यशैली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। शासकीय प्राथमिक शाला बाड़ी टोला में पदस्थ प्रधान पाठक जीवन लाल नौरिया को चेक बाउंस मामले में छह माह की न्यायिक सजा होने के बाद भी जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) संदीप नेमा द्वारा अब तक कोई वैधानिक कार्रवाई नहीं की गई है।
मामले में शिक्षा विभाग की चुप्पी और 25 दिन से अधिक की प्रशासनिक देरी ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या जिले के जिला शिक्षा अधिकारी को सेवा नियमों और विभागीय प्रक्रिया की जानकारी है या नहीं?
मामला क्या है
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, प्रधान पाठक जीवन लाल नौरिया, जो विकासखंड करेली के अंतर्गत शासकीय प्राथमिक शाला बाड़ी टोला में कार्यरत हैं, के खिलाफ Negotiable Instruments Act, 1881 की धारा 138 के तहत चेक बाउंस प्रकरण दर्ज था।
इस मामले की सुनवाई माननीय जिला न्यायालय नरसिंहपुर में हुई, जिसमें 15 सितम्बर 2025 को न्यायालय ने दोषसिद्धि (Conviction) के बाद उन्हें 6 माह की सजा सुनाई और जेल भेज दिया।
नियम क्या कहते हैं
“यदि कोई शासकीय सेवक न्यायिक अभिरक्षा (Judicial Custody) में भेजा जाता है, तो उसे उसी तिथि से स्वतः निलंबित (Deemed Suspended) माना जाएगा।”
इसका अर्थ यह है कि जैसे ही कोई सरकारी कर्मचारी जेल जाता है, वह उसी दिन से निलंबित माना जाएगा। इसके बाद विभागीय अधिकारी (यहां DEO) का कर्तव्य होता है कि वह उस निलंबन को औपचारिक रूप से आदेश के रूप में जारी करे और इसकी सूचना कलेक्टर एवं लोक शिक्षण आयुक्त को भेजे।
लेकिन, इस प्रकरण में ऐसा नहीं हुआ
मामला 15 सितम्बर का है। लेकिन DEO कार्यालय से इस संबंध में पहला पत्र 01 अक्टूबर 2025 को जारी हुआ — क्रमांक क/6524/शिकायत/2025। इस पत्र में केवल इतना लिखा गया कि “जीवन लाल नौरिया के विरुद्ध दर्ज प्रकरण एवं न्यायालय का आदेश प्राप्त कर इस कार्यालय को अवगत कराएं।”
यानि, DEO कार्यालय को न तो पहले से यह जानकारी थी, और न ही उसने कोई स्वतः संज्ञान लेकर निलंबन आदेश जारी किया। जबकि, जिला शिक्षा अधिकारी संदीप नेमा का दायित्व था कि वे उसी दिन या अगले कार्य दिवस पर “Deemed Suspension” की प्रक्रिया को औपचारिक रूप दें। लेकिन अब तक न तो निलंबन आदेश जारी हुआ है और न ही कोई विभागीय जांच प्रारंभ की गई है।
निष्कर्ष
यह पूरा मामला इस बात की मिसाल है कि नियमों की जानकारी न होने या जानबूझकर उपेक्षा करने से प्रशासनिक व्यवस्था किस तरह कमजोर पड़ती है। एक दोषसिद्ध शिक्षक जेल में है, लेकिन विभाग अब तक यह तय नहीं कर पाया कि उसे निलंबित किया जाए या नहीं। यह न केवल कानून की अवहेलना है बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि — “क्या जिला शिक्षा अधिकारी संदीप नेमा को अपने ही विभाग के नियमों की जानकारी नहीं है?”




