06/08/2025

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❗आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय की लापरवाही से नरसिंहपुर शिक्षा व्यवस्था अधर में कलेक्टर को बार-बार देना पड़ रहा जिला शिक्षा अधिकारी का अस्थाई प्रभार

❗<div class="headline">❗आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय की लापरवाही से नरसिंहपुर शिक्षा व्यवस्था अधर में कलेक्टर को बार-बार देना पड़ रहा जिला शिक्षा अधिकारी का अस्थाई प्रभार</div>
❗आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय की लापरवाही से नरसिंहपुर शिक्षा व्यवस्था अधर में कलेक्टर को बार-बार देना पड़ रहा जिला शिक्षा अधिकारी का अस्थाई प्रभार

नरसिंहपुर, 4 अगस्त 2025 — आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय, मध्यप्रदेश की निष्क्रियता के कारण नरसिंहपुर जिले को अब तक एक स्थायी जिला शिक्षा अधिकारी (D.E.O.) नहीं मिल पाया है।

इस कारण जिले की शिक्षा व्यवस्था केवल ‘प्रभारी व्यवस्था’ पर चल रही है। हर कुछ महीने में कलेक्टर को अपने स्तर से किसी नए अधिकारी को अस्थायी प्रभार देना पड़ता है, जिससे व्यवस्था में अस्थिरता बनी रहती है।

🔁 हरिप्रसाद कुर्मी के रिटायरमेंट से शुरू हुआ ‘प्रभार काल’

नरसिंहपुर में शिक्षा विभाग का यह संकट तब शुरू हुआ जब स्थायी जिला शिक्षा अधिकारी श्री हरिप्रसाद कुर्मी सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद से स्थायी नियुक्ति नहीं हुई और कलेक्टर को एक के बाद एक प्राचार्यों को प्रभारी डीईओ नियुक्त करना पड़ा:

  • प्राचार्य अनिल ब्यौहार को सबसे पहले प्रभारी डीईओ नियुक्त किया गया।
  • ⿢ उनके सेवानिवृत्त होने के बाद प्राचार्य एम. एस. खान (सलीम खान) को जिम्मेदारी सौंपी गई।
  • 31 जुलाई 2025 को एम. एस. खान भी सेवानिवृत्त हो गए।
  • 2 अगस्त 2025 को प्राचार्य संदीप नेमा, शा. उ.मा. वि. डांगीढाना को नया प्रभारी डीईओ बनाया गया।

🎯 सिर्फ “प्रभार” के सहारे व्यवस्था!

लगातार बदलते प्रभारी अधिकारियों के कारण जिले की शैक्षणिक योजनाओं, शिक्षक व्यवस्थापन, वित्तीय स्वीकृतियों और परीक्षा संचालन जैसे मामलों में स्पष्ट नेतृत्व नहीं बन पा रहा। यह स्थिति शिक्षा की गुणवत्ता और प्रशासनिक जिम्मेदारी, दोनों पर प्रतिकूल असर डाल रही है।

🔍 बड़ा सवाल यह है:

क्या आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय जिला शिक्षा अधिकारी जैसे महत्वपूर्ण पद को लेकर गंभीर नहीं है?
क्यों एक ज़िले को स्थायी डीईओ देने में इतने महीनों से देरी हो रही है?
क्या अस्थायी नियुक्तियों से ही शिक्षा व्यवस्था को चलाना पर्याप्त है?

📌 शिक्षा व्यवस्था के साथ “जुगाड़”?

अगर बार-बार केवल प्रभार देकर जिम्मेदारी निभाई जा रही है और स्थायी नियुक्तियों से बचा जा रहा है, तो इसे “जुगाड़” की नीति ही माना जाएगा। यह स्थिति किसी भी दृष्टि से स्वस्थ प्रशासनिक परंपरा का प्रतीक नहीं मानी जा सकती।

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